शिक्षा का संकट: भारत में शिक्षा इतनी महंगी क्यों है?
शिक्षा तंत्र की मौजूदा स्थिति
भारत का शिक्षा तंत्र आज गहरे संकट में है। सरकारी स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं की भारी कमी है-कई स्कूलों में साफ पानी, बिजली और शौचालय तक उपलब्ध नहीं हैं। ग्रामीण और शहरी स्कूलों के बीच बुनियादी ढांचे में भारी अंतर है, जिससे गरीब और ग्रामीण बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा नहीं मिल पाती।
शिक्षा महंगी क्यों है?
सरकारी बजट की कमी: शिक्षा क्षेत्र को अपेक्षित बजट नहीं मिलता, जिससे सरकारी स्कूलों की हालत खराब है और गरीब परिवारों के लिए विकल्प सीमित हो जाते हैं।
महंगी निजी शिक्षा: प्राइवेट स्कूलों और कॉलेजों की फीस बहुत अधिक है, जिससे गरीब और निम्न-मध्यम वर्ग के लिए उच्च शिक्षा एक सपना बन जाती है।
महंगी किताबें और सामग्री: किताबों और स्टेशनरी की कीमतें लगातार बढ़ रही हैं। पब्लिशर्स और स्कूलों के बीच गठजोड़, ब्रांडेड किताबें और डिजिटल कंटेंट की लागत भी बढ़ने का कारण है।
कोचिंग और ट्यूशन का दबाव: प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए महंगी कोचिंग जरूरी हो गई है, जो गरीब परिवारों की पहुंच से बाहर है।
गरीब बच्चों की पढ़ाई में बाधाएँ
आर्थिक तंगी: फीस, किताबें, यूनिफॉर्म, ट्रांसपोर्ट-इन सबकी लागत गरीब परिवारों के लिए भारी है, जिससे वे अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेज पाते।
श्रम और सामाजिक दबाव: कई गरीब बच्चे परिवार की आय में मदद करने के लिए काम करने लगते हैं, जिससे उनकी पढ़ाई छूट जाती है।
बुनियादी सुविधाओं की कमी: सरकारी स्कूलों में टीचर की कमी, कमज़ोर इंफ्रास्ट्रक्चर और असमानता के चलते गरीब बच्चों की शिक्षा प्रभावित होती है।
किताबें इतनी महंगी क्यों हैं?
प्रकाशन लागत और ब्रांडिंग: ब्रांडेड किताबें, नए सिलेबस और डिजिटल सामग्री की वजह से किताबें महंगी होती जा रही हैं।
एकाधिकार और कमीशन: कई स्कूल खास पब्लिशर्स की किताबें ही खरीदने को मजबूर करते हैं, जिससे कीमतें और बढ़ जाती हैं।
बच्चों पर इतना बोझ क्यों?
रट्टा प्रणाली और परीक्षा का दबाव: भारतीय शिक्षा तंत्र में नंबरों और रैंकिंग का अत्यधिक दबाव है, जिससे बच्चों पर मानसिक बोझ बढ़ता है।
अत्यधिक प्रतियोगिता: हर स्तर पर प्रतियोगिता इतनी ज्यादा है कि बच्चे तनाव, चिंता और अवसाद का शिकार हो जाते हैं।
अव्यावहारिक पाठ्यक्रम: कई स्कूलों में पाठ्यक्रम पुराना और भारी है, जिसमें जीवन कौशल, खेल, कला या रचनात्मकता के लिए जगह नहीं है।
समाधान की दिशा
सरकारी निवेश बढ़ाना: शिक्षा के लिए बजट बढ़ाना और सरकारी स्कूलों में बुनियादी सुविधाएँ सुनिश्चित करना जरूरी है।
शिक्षकों की गुणवत्ता और संख्या बढ़ाना: प्रशिक्षित शिक्षकों की भर्ती और उनके प्रशिक्षण पर जोर देना चाहिए।
सस्ती और गुणवत्तापूर्ण किताबें: सरकारी स्तर पर किताबों की कीमतें नियंत्रित करना और ओपन-सोर्स सामग्री को बढ़ावा देना चाहिए3।
पाठ्यक्रम में सुधार: रट्टा प्रणाली की जगह व्यावहारिक, कौशल-आधारित और समग्र विकास पर आधारित शिक्षा को अपनाना चाहिए।
निष्कर्ष:
भारत का शिक्षा तंत्र आज कई चुनौतियों से जूझ रहा है-महंगी शिक्षा, किताबों की ऊँची कीमतें, बच्चों पर मानसिक दबाव और गरीबों के लिए बढ़ती असमानता। जब तक सरकार, समाज और शिक्षा नीति निर्माता मिलकर इन समस्याओं का समाधान नहीं करेंगे, तब तक "सबको शिक्षा" का सपना अधूरा ही रहेगा।
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