पाकिस्तान और आतंकवाद: एक गहन विश्लेषण
पाकिस्तान की भूमिका को लेकर अंतरराष्ट्रीय समुदाय में लंबे समय से यह बहस चल रही है कि क्या यह देश आतंकवाद को सक्रिय रूप से प्रायोजित करता है। विशेषज्ञों, खुफिया एजेंसियों, और वैश्विक संस्थाओं के अनुसार, पाकिस्तान ने अपने राजनीतिक और सैन्य हितों की पूर्ति के लिए आतंकवादी समूहों को संरक्षण दिया है। इसकी पुष्टि में कई ऐतिहासिक और समकालीन घटनाएँ हैं, जैसे कि 2001 के 9/11 हमलों में अलकायदा की भूमिका, 2008 का मुंबई आतंकी हमला, और हाल के वर्षों में जम्मू-कश्मीर में होने वाली घटनाएँ। अमेरिकी विदेश विभाग की 2024 की रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान में आतंकी हमलों में 50% की वृद्धि हुई है, जिसमें तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) और बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी जैसे समूह सक्रिय हैं। यह रिपोर्ट पाकिस्तान की सुरक्षा स्थिति को "भयावह" बताती है, जो इसके आंतरिक संकट और अंतरराष्ट्रीय दबाव के बीच की जटिलता को उजागर करती है।
ऐतिहासिक संदर्भ और राज्य की भूमिका
सैन्य-खुफिया नेटवर्क और प्रॉक्सी युद्ध
पाकिस्तानी सेना और इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) ने 1980 के दशक से ही आतंकवादी समूहों को "रणनीतिक संपत्ति" के रूप में विकसित किया है। अफगानिस्तान में सोवियत संघ के खिलाफ मुजाहिद्दीन को अमेरिकी-पाकिस्तानी सहयोग से प्रशिक्षित किया गया, जिसने बाद में तालिबान और अलकायदा को जन्म दिया। 1990 के दशक में, भारत के विरुद्ध "छद्म युद्ध" (प्रॉक्सी वार) की रणनीति के तहत लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे समूहों को स्थापित किया गया। इन समूहों को आईएसआई से प्रशिक्षण, धन, और रसद सहायता मिलती रही है।
राजनीतिक अस्थिरता और आतंकवाद का उदय
पाकिस्तान की राजनीतिक व्यवस्था में सेना का प्रभुत्व रहा है, जिसने लोकतांत्रिक संस्थाओं को कमजोर किया है। 2008 के बाद से लोकतांत्रिक सरकारों के कार्यकाल में भी सेना की नीतियों पर नियंत्रण बना रहा। इस अस्थिरता ने आतंकवादी समूहों को पनपने का मौका दिया। उदाहरण के लिए, 2014 में पेशावर के स्कूल हमले के बाद सेना ने आतंकवाद के खिलाफ ऑपरेशन ज़र्ब-ए-अज़ब शुरू किया, लेकिन इसके बावजूद टीटीपी और अन्य समूह सक्रिय रहे।
प्रमुख आतंकी संगठन और उनका नेटवर्क
लश्कर-ए-तैयबा (LeT) और उसके सहयोगी
1980 के दशक में स्थापित यह संगठन मुख्य रूप से भारत के विरुद्ध कार्य करता है। 2008 के मुंबई हमले में इसकी भूमिका सामने आई, जिसमें 166 लोग मारे गए थे। हाल ही में, इसके सहयोगी संगठन द रेजिस्टेंस फ्रंट (TRF) ने अप्रैल 2025 में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में पर्यटकों पर हमला किया, जिसमें 26 लोगों की मौत हुई। हालाँकि, बाद में TRF ने इसकी जिम्मेदारी से इनकार कर दिया। यह घटना पाकिस्तान-समर्थित समूहों की रणनीति को दर्शाती है, जहाँ वे हमलों को अंजाम देते हैं, लेकिन अंतरराष्ट्रीय दबाव से बचने के लिए इनकार कर देते हैं।
तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी)
यह समूह पाकिस्तानी तालिबान के नाम से जाना जाता है और अफगान तालिबान से अलग है। 2021 में अफगानिस्तान में तालिबान की सत्ता वापसी के बाद टीटीपी की शक्ति में वृद्धि हुई है। अमेरिकी रिपोर्ट के अनुसार, 2023 में पाकिस्तान में 50% अधिक आतंकी हमले हुए, जिनमें टीटीपी की प्रमुख भूमिका थी। यह समूह खैबर पख्तूनख्वा और बलूचिस्तान प्रांतों में सक्रिय है तथा स्थानीय आबादी और सुरक्षा बलों को निशाना बनाता है।
बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (BLA)
बलूचिस्तान की स्वायत्तता की माँग करने वाला यह समूह पाकिस्तानी सेना और चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) परियोजनाओं के विरुद्ध हिंसक गतिविधियों में लिप्त है। BLA ने हाल के वर्षों में ग्वादर बंदरगाह और अन्य स्थानों पर कई हमले किए हैं, जिससे पाकिस्तान की आंतरिक सुरक्षा चुनौतियाँ उजागर हुई हैं।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया और आर्थिक दबाव
FATF की भूमिका और पाकिस्तान की ग्रे लिस्ट से बाहरी
2018 में पाकिस्तान को वित्तीय कार्रवाई कार्यबल (FATF) की ग्रे लिस्ट में डाला गया था, क्योंकि उस पर आतंकवादियों को वित्तीय सहायता देने के आरोप लगे थे। 2022 में FATF ने पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट से हटा दिया, जिसे पाकिस्तान ने अपनी सफलता बताया। हालाँकि, विशेषज्ञों का मानना है कि यह निर्णय राजनीतिक था और पाकिस्तान में आतंकवादी वित्तपोषण की समस्या अभी भी बनी हुई है। अमेरिकी रिपोर्ट के अनुसार, 41 आतंकी समूह अभी भी पाकिस्तान में सक्रिय हैं, जो नकदी और अवैध हवाला नेटवर्क का उपयोग करते हैं।
भारत-पाकिस्तान संबंधों पर प्रभाव
पाकिस्तान-समर्थित आतंकवाद ने भारत के साथ संबंधों को गंभीर रूप से प्रभावित किया है। 2019 के पुलवामा हमले के बाद भारत ने सर्जिकल स्ट्राइक और बालाकोट हवाई हमले जैसे जवाबी कदम उठाए। साथ ही, भारत ने पाकिस्तान के साथ व्यापारिक संबंध समाप्त कर दिए और सिंधु जल समझौते को स्थगित किया। इन कदमों ने पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को और कमजोर किया है, जो पहले से ही ऋण संकट से जूझ रही है।
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