एक खिड़की के पीछे – मां बनी एक चिड़िया की निःशब्द तपस्या
हर घर की खिड़की से रोशनी आती है… पर कभी-कभी वहीं से ज़िंदगी की सबसे सुंदर कहानी भी झांकती है। यह कहानी है एक चिड़िया की, जिसने मेरे घर की खिड़की पर न केवल घोंसला बनाया, बल्कि मां बनने की सबसे मौन और महान परिभाषा भी रच दी।
🕊️ पहली मुलाकात – चुपचाप एक मां आई
एक दिन देखा कि खिड़की के कोने में कुछ तिनके इकठ्ठा हो रहे हैं। दो-चार दिन में समझ आ गया कि एक नन्हीं सी पड़किया ने वहां अपना घोंसला बनाया है। बिना कोई शोर किए, वो हर दिन एक-एक तिनका लाती रही – जैसे कोई ईश्वर की साधना कर रही हो। जल्द ही उसने अंडे दिए, और फिर हर दिन, हर रात… बस वहीं बैठी रही।
🔥 गर्मी, तपस्या और चिंता
उस समय मई की तपती दोपहरी चल रही थी। चिड़िया वहीं जमी रही। मुझे चिंता हुई – कहीं उसे गर्मी न लग रही हो।
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बहुत दूर से, बहुत प्यार से एक हल्की सी पानी की फुहार उसकी ओर की… वो न उड़ी, न चौंकी… बस वैसे ही शांत रही। जैसे कह रही हो –
\"जब तक मेरी सांस है, ये अंडे मेरे जीवन का केंद्र हैं।\"
❗ जब अंडा गिर गया था...
कभी एक बार उसका एक अंडा लुढ़क गया था। वो दृश्य देखकर दिल भर आया… तबसे मैंने खिड़की के सामने एक पतला कपड़ा टांग दिया, ताकि न धूप आए और न अंडे गिरें। अब वो चिड़िया फिर से अपने अंडों पर बैठी है – शांति से, मौन साधना जैसी स्थिति में।
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💖 खिड़की के पार एक सीख
हर रोज़ जब मैं उस खिड़की से झांकता हूं, मुझे वो चिड़िया सिर्फ एक पक्षी नहीं लगती… वो लगती है – प्रकृति की ममता, एक मां की पराकाष्ठा, और जीवन का गूढ़ संदेश।
📝 एक मूल कविता: \"घोंसले की मां\"
घोंसले की मां न कोई आवाज़, न कोई मांग, बस आंखों में सपनों का उजास लिए, हर तिनके में बुनती रही अपना संसार। न धूप से डरी, न आंधी से, ममता की छाया में पले अंडों की ढाल बनी, खिड़की के कोने में बैठी वो चिड़िया, सिखा गई – मां होना सबसे बड़ी पूजा है।
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📢 Call to Action
अगर आपके आसपास कोई पक्षी घोंसला बना रहा हो:
- उसे डराएं नहीं 🛑
- उसे सुरक्षित जगह दें 🛡️
- बच्चों को सिखाएं – प्रकृति की हर रचना सम्मान के योग्य है।
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⚠️ Disclaimer
यह कहानी सच्ची घटना पर आधारित है। प्रकृति में हस्तक्षेप से बचें और पक्षियों को दूर से ही प्यार करें।
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